सोचता हूँ कि कहीं से एक बड़ा सा , बहुत बड़ा सा , कैनवस लाऊँ, तुम्हारे नाम के रंग बिखेरु , भरू उसमें और ज़माने भर को वो कैनवस दिखाऊँ बस और फस तुमको ही नहीं। वैसे ये ज्याजती तो बिल्कुल नहीं कहीं जा सकती, हो सकता है मेरी चाहत ही यहीं हो कि अपनी लफ्जों को रंग बना कर तुम्हारी तारीफें तुम तक तमाम लोगों की आवाज़ से पहुचाऊँ , और तुम बेसब्री से कैनवस देखने आओ , देखने आओं खुद अपने को मेरे निगाह से । हो सकता हो जब तुम देखो तो एक शहर तुम्हें तुममें दिखे , तमाम गली, रंग - बदरंग दीवारें, रास्तो में बिखरे ज़र्द फूल , किताबें दिखाई दे। तुम ज्यादा सोचना नहीं की ये सब क्यों, क्यूँकि दुनिया तुमको एक खूबसूरत तस्वीर ही सा देखा , पर ये तुमने जो देखा असल में वो तुम हो मेरे लिए एक शरीर से कहीं ज्यादा , एक शहर के मानिंद ।। Unvaan