Saturday 16 July 2016


ये जो तुम्हारे  आँखों पे लिहाफ है ,
क्या कहे सूरत महताब है !
रस्क रहाता है इन आँखों में   कोई
ज़र्रा ज़र्रा इनका शायर का ख्वाब है !!!
unvaan
मेरा ख्याल दामन थामे तुम्हरा
शौक सा लम्हा , शौक कि बातें
इब्तिदा तुमसे इंतिहा तुमसे
बावस्ता तुमसे मेरे ख्याल
दामन थामे तुम्हारा !

रुकी रुकी लफ्ज़े , उलझे उलझे हर्फ़,
रात ख़ाबों में लफ्ज़ो के जाले तले,
ख़ामुशी में बनती तस्वीर तुम्हारी ,
वो दर्द वो करार मेरे
दामन थामे तुम्हारा !
उनवान
तमाम शब मै  रहा आसमा के नीचे,
ना चांद ना तुम ना ही ओस कही !


Wednesday 13 July 2016

neh ki baten

सोचता हूँ कि कहीं से एक बड़ा सा , 
बहुत बड़ा सा , कैनवस लाऊँ, 
तुम्हारे नाम के रंग बिखेरु , 
भरू उसमें और ज़माने भर को वो कैनवस दिखाऊँ 
बस और फस तुमको ही नहीं।
 वैसे ये ज्याजती तो बिल्कुल नहीं कहीं जा सकती, 
हो सकता है मेरी चाहत ही यहीं हो
 कि अपनी लफ्जों को रंग बना कर
 तुम्हारी तारीफें तुम तक तमाम लोगों की आवाज़ से पहुचाऊँ ,
 और तुम बेसब्री से कैनवस देखने आओ ,
 देखने आओं खुद अपने को मेरे निगाह से ।
 हो सकता हो जब तुम देखो तो एक शहर तुम्हें तुममें दिखे ,
 तमाम गली, रंग - बदरंग दीवारें, रास्तो में बिखरे ज़र्द फूल , किताबें दिखाई दे।
 तुम ज्यादा सोचना नहीं की ये सब क्यों,
 क्यूँकि दुनिया तुमको एक खूबसूरत तस्वीर ही सा देखा
, पर ये तुमने जो देखा असल में वो 
तुम हो मेरे लिए एक शरीर से कहीं ज्यादा , एक शहर के मानिंद ।।
 Unvaan